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मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे गुट की याचिका संविधान पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने पर न्यायालय विचार करेगा

नयी दिल्ली, छह सितंबर – उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे धड़े के उस दावे पर गौर किया जिसमें आरोप लगाया गया है कि उद्धव ठाकरे का खेमा निर्वाचन आयोग के समक्ष कार्यवाही को बाधित करने का प्रयास कर रहा है। इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि वह शिंदे खेमे की याचिका को संविधान पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने पर विचार करेगा।

शिवसेना और उसके चुनाव चिह्न पर शिंदे खेमे का दावा निर्वाचन आयोग के समक्ष लंबित है। शिंदे खेमे ने अपने आवेदन में मांग की है कि उसे असली शिवसेना घोषित किया जाए और पार्टी का चुनाव चिन्ह (तीर-धनुष) उसे आवंटित किया जाए।

उच्चतम न्यायालय ने शिवसेना और शिंदे की ओर से दाखिल विभिन्न याचिकाओं को पिछले दिनों पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेज दिया था, जिनमें दलबदल, विलय और अयोग्यता से जुड़े कई संवैधानिक सवाल उठाए गए हैं। इसके साथ ही सर्वोच्च अदालत ने निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया था कि वह शिंदे गुट की उस याचिका पर कोई आदेश पारित न करे, जिसमें उसे असली शिवसेना मानने और पार्टी का चुनाव चिन्ह आवंटित करने की मांग की गई है।

शिंदे गुट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एन के कौल ने प्रधान न्यायाधीश न्यायूमर्ति उदय उमेश ललित की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा, ‘‘हमारे अनुसार, कोई अंतरिम आदेश नहीं है। अदालत ने दूसरे पक्ष (उद्धव समूह) को समय दिया था। अब, दूसरा पक्ष निर्वाचन आयोग के समक्ष कार्यवाही को बाधित कर रहा है। राज्य में अक्टूबर महीने में कुछ चुनाव होने हैं।”

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “मैं उस पर गौर करूंगा और मैं अभी कुछ भी नहीं कह सकता, लेकिन निश्चित तौर पर, कल तक कुछ होगा।”

तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन. वी. रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने 23 अगस्त को शिव सेना के दोनों धड़ों की विभिन्न याचिकाओं को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने का आदेश दिया था। पीठ ने कहा था कि ये याचिकाएं संविधान की 10वीं अनुसूची से जुड़े कई अहम संवैधानिक मुद्दों को उठाती हैं, जिनमें अयोग्यता, अध्यक्ष एवं राज्यपाल की शक्तियां और न्यायिक समीक्षा शामिल है।

पीठ ने कहा कि 10वीं अनुसूची से संबंधित नबाम रेबिया मामले में संविधान पीठ द्वारा निर्धारित कानून का प्रस्ताव एक विरोधाभासी तर्क पर आधारित है, जिसके तहत संवैधानिक नैतिकता को बनाए रखने के लिए रिक्तता को भरने की आवश्यकता है।

पीठ महाराष्ट्र में हाल के राजनीतिक संकट से जुड़े लंबित मामलों की सुनवाई कर रही थी, जिसके कारण राज्य में शिवसेना के नेतृत्व वाली महा विकास आघाडी (एमवीए) सरकार गिर गई थी।

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